१) कटी
अंगुलियां
बरसों पहले सुनी थी
वो कहानी
जिसे आज साक्षात
देख भी लिया
एक बालक
एक कसाई के यहाँ
नोकरी करता था
काम के
बदले में मिल जाती थी
दो वक़्त की
रोटी–
१) कटी
अंगुलियां
बरसों पहले सुनी थी
वो कहानी
जिसे आज साक्षात
देख भी लिया
एक बालक
एक कसाई के यहाँ
नोकरी करता था
काम के
बदले में मिल जाती थी
दो वक़्त की
रोटी–
१) कल रात
उसे बड़े दिनों बाद
मेरी याद हो आयी
और आ गया
अपने प्यारे साज़,
छैनी और हथौड़ा लेकर
और शुरू हो गया
मेरे सुफ्त भावों पर
चोट कर कर
छील डाला मेरा जिस्म
सँवारने की कोशिश में–
१)
सांपो की बस्ती में चलना सम्भल कर
हर इक शख्श यहाँ डसता मचल कर
चूमकर कपोल करता मदहोश तुमको
मारे डंक फिर तेरी जिव्हा कुचल कर
किसी से ना जुर्म उसका तू कह पाए
वास्ते वो जुवां तेरी रखता पकड़ कर
१) आज मैं
सो रही हूँ
मुझे
जगाना मत
संगतराश
तू बरसों से
जगा रहा है
मुझे
ठोंक ठोंक कर
ज़रा सा भी
नहीं सोचा तूने
की चोट लगती है –
वो लम्हे
आते जाते हर सफर में
होती थी जब
किताब सबके हाथ में
सच्चे मित्र जैसे
हर पल
साथ निभाती पुस्तके
राह दिखाती..
पुस्तको में
वो खतों का
आदान प्रदान.. –
आज
फिर वो फरिश्ता
चुपचाप बैठ गया
मेरे सामने,
निहारता रहा मुझे
मैं सो रही थी
पर कैसे सोती
जैसे चांदनी रात में
सूरज चमक उठा हो,
ऐसे ही उसकी
मुहब्बत भरी किरणें
मेरी पलकों पे पड़ी
और मैं चुँधिया कर
जाग गई,–
अचानक हो रहा है कुछ नया सा एहसास।
मचल रहे हैं अरमान, जग रहे हैं सुप्त प्राण।
मन करता है, मैं भी मनाऊँ त्यौहार।
बाँधू राखी, भाई की कलाई पर।
लगाऊँ मंगल टीका, उतारूं नज़र।
तीज मनाऊँ, जाऊँ बाबुल के घर।
लौट जाऊँ , बचपन के आँगन में।
पेड़ों पर झूले डालूँ, झूलूँ सावन में।
विचरूँ उन्मुक्त बाबुल के कानन में।
बच्चों संग अलमस्त खेलूँ आँगन में।
नमस्कार
नमस्कार सबै मेरा देव-पितृ-गुरुकन
नमस्कार सबै मेरा आफन्त र अरुकन
यी दुवै हात जोडेर मुस्कुराएर प्रेमले
नमस्कार सबै मेरा फेबु मित्रहरूकन ।।१।।
जायज़
आमा राष्ट्रपति प्रफुल्ल मनले आशीष दिन्छिन् लिनू
नाना भाँति भनी विवाद गरिने कौटिल्य छाडीदिनू
आमाका अगि टेक्न जायज घुँडा राजा भए तापनि
नाना शास्त्रहरू पढी बुझिलिनू आचारमा बाँधिनू ।।२।।
हाम्रो गौरव नेपाल जस्तै बर्मेलीको आगनमा
हाम्रो सौरव हिमाल जस्तै बर्मेलीको आगनमा
स्वच्छ शान्त बुद्ध भूमी स्वयंभूको दर्शन
हाम्रो गौरव श्री नाथ जस्तै बर्मेलीको आगनमा ।
हाँसे पनि हामीनैंहौं रोए पनि हामी
नाचे पनि हामीनैंहौं गाए पनि हामी
सुख दुख तातो छारो जीवनी माया
लाए पनि हामीनैंहौं छाए पनि हामी ।
नगर की प्रसिद्ध वैश्या की गली से एक योगी जा रहा था कंधे पर झोली डाले। योगी को देखते ही एक द्वार खुला। सामने की महिला ने योगी को देखा। ध्यान की गरिमा से आपूर, अंतर मौन की रश्मियों से भरपूर। योगी को देखकर महिला ने निवेदन किया गृह में पधारने के लिए। उसके आमन्त्रण में वासना का स्वर था।योगी ने उत्तर दिया,” देखती नहीं झोली में दवाएं पड़ी हैं, गरीबों में बांटनी हैं उन्हें रोगों से मुक्त करना है। हमारे और तुम्हारे कार्य में अंतर है तुम रोग बढ़ाती हो, हम रोग मिटाते हैं। तुम शरीर और वासना की भाषा बोलती हो, हम सत्य और बोध की।”
एक
तुम ही से माथे का कुमकुम ,
तुम ही से हाथों के कंगन।
मंगलसूत्र तुम ही से सजता ,
तुम ही से पायल की छनछन।
तुम ही से हैं सुबहो शाम ,
तुम ही से महके घर गाम।
रूप -सिंगार तुम ही से सजता ,
तुम ही से महका मन उपवन।
मन में यही प्रतिज्ञा लेकर सबको आगे आना है।
सबको मिलकर हिंदी भाषा को महकाना है।
आँच आने पाये ना माता के गौरव पर कभी ,
अपनी मातृ भाषा को और समृद्ध बनाना है।
संस्कृत की बेटी है, उर्दू की प्यारी बहना है।
प्यारी हिंदी भाषा सब भाषाओँ का गहना है।
आओ सब मिलकर, प्रण करो साथियो ,
हिंदी भाषा को जन – जन की भाषा बनाना है।
समय सिङ्गो
आधार नयनमा
सब्य योजना
यथार्थमा जीवन
पदार्थमा जीवन ।।
सत्यार्थ बाटो
हिंड्न कष्ट मानब
लाज घुमौरी
अर्थ बिना गोविन्द
कष्ट बिना योगेन्द्र ।।
कितना करता है असर तूफ़ान देखा जाएगा
फिर यहाँ गुलशन मेरा वीरान देखा जाएगा ।
एक अदना फूल हूं बस इतनी है मेरी विसात
हौसले को तोड़कर गुलदान देखा जाएगा ।
राह में शोले हैं जख़्मी पांव खूं से तरबतर
और फिर आगे सफ़र आसान देखा जाएगा ।
1) भोजपुरी कविता
लाल लाल टमाटर देखs के
सबके जीव ललचाय हो गोरी
सबके जीव ललचाय
लाल टमाटर खाई के गोरी
लाल गाल दिखलाय हो गोरी
लाल गाल दिखलाय
पड़ल मँहगाई के अइसन मार
टमाटर गईल सौ रूपिया के पार
बिन गर्मी के पारा चढ़ल
सैतालिस के पार उ बढ़ल
१) “अलबेली चली अलबेला ढूढ़ने”
अलबेली की जब शादी की
उम्र हो आई तो / उसको अलबेला ढूढ़ने की सूझी
सोची चुटकी बजा कर / इस पहली को सुलझा दूँगी !
लव और अरैंज के विवाद में उलझी
पर किसको पता था वो
कई वर्षों के वनवास में फंसी !
कभी कॉलेज तो
तो कभी लाइब्रेरी तो
कभी केन्टीन तो
तो कभी पार्क में
कभी कोचिंग में
तो कभी पार्टियों में
फिर ना मिला वे छबिला !
कहिले त शरदको याम बनी आयौ
कहिले विवशतामा घाम बनी आयौ ।
घडीको सुइ झैँ धकेलिँदै यताकता
थकानमा फलैचा आराम बनी आयौ ।
गुलेलिको मट्याङ्ग्रा झैँ भर छैन तिम्रो
खिल परेको घाउमा डाम बनी आयौ ।
बेचैन हर जगह थे, हम इस जहां में आकर ।
सोए नहीं थे कब से, महलों में चैन पाकर ।
न खुली है नींद मीठी, आगोश-ए-कब्र में आ,
कितना सुकूं मिला है, छोटे मकां में आकर ।
आगोशे कब्र = कब्र की गोद
सौ बार ये लगता है किस्मत, दीवार खड़ी कर देती है ।
आसान लग रही राहों में, अवरोध अधिक भर देती है ।
पर सच यह भी दृढनिश्चय ले, साहस से आगे बढो अगर,
होचुकी बाम ये किस्मत ही, पथ को समतल कर देती है ।
चकोर के आने इंतजार में
चाँद रात के द्वार पर खड़ा
कही निगल न लें अंधेरा! ये सब कुछ निगल लेता
पर कुछ पदचिन्ह नहीं छोड़ता
केवल अंधेरे के! किसी की खुशी को
किसी के अरमानों को
किसी के प्यार को
किसी के जहाँ को.. .. पहले चाँद को
धीरे धीरे खाता जाता
फिर चाँदनी को कैद़ करता
फिर सारे तारों की चमक
धूमिल कर देता है!
जिन्दगी कुछ इस तरह, अपनी बनाओ दोस्तों |
गम के तूफानों से लड़ , उस पार जाओ दोस्तों |
पूर्ण धरती और गगन, पाने को है उपलब्ध जब,
जिस तरह जितना मिले, अपना बनाओ दोस्तों |
देश की खातिर मरें हम, प्रण हमारे दिल में हो,
देश पर बलिदान हो , अमरत्व पाओ दोस्तों |